Header Ads Widget

Responsive Advertisement

मदीना-अल-ज़हराः दुनिया का सबसे ख़ूबसूरत शहर जो सिर्फ़ 70 साल रहा.

मदीना-अल-ज़हराः दुनिया का सबसे ख़ूबसूरत शहर जो सिर्फ़ 70 साल रहा.
          कहते हैं वो शानदार शहर था. विलासिता और शेख़ी से भरा. जो इस शहर को देखता मुंह खुला का खुला रह जाता. इसमें कोई शक नहीं है कि अपने दौर में वो दुनिया का सबसे ख़ूबसूरत शहर था. स्मारकों और आकर्षणों से भरा ये शहर स्पेन के एंडालूसिया प्रांत के कोरडोबा से आठ किलोमीटर दूर बसाया गया था. और ये भी इतिहास है कि ये शहर सिर्फ़ 70 साल तक रहा. हम बात कर रहे हैं मिथकीय मदीना अज़हारा जिसका अरबी नाम मदीना-अल-ज़हरा था यानी 'चमकीला शहर'. उस समय स्पेन और उत्तरी अफ़्रीका के इलाक़ों पर अरब मुसलमानों का शासन था. अल अंदालूस (जो अब स्पेन का अंदालूसिया प्रांत है) के राजकुमार ख़लीफ़ा अब्दुर्रहमान तृतीय ने साल 936 में कोरडोबा के पश्चिम में, ग्वादलकिवीर नदी के किनारे अपनी राजधानी बसाई थी. राजधानी बसाई थी.  इमेज स्रोत,GETTY IMAGES नदी किनारे चट्टानों पर बसा ये शहर उस दौर में दुनिया का सबसे ख़ूबसूरत शहर रहा होगा जिसे देखकर लोग हैरान रह जाते थे. दस साल में बना शहर शहर का नाम मदीना-अल-ज़हरा रखा गया. ये शहर दस साल में ही खड़ा हो गया था. साल 945 में ख़लीफ़ा का दरबार भी यहां आ गया था. इस नई राजधानी को बनाने में बेशुमार दौलत ख़र्च की गई. कुछ स्रोतों के मुताबिक शहर के निर्माण में दस हज़ार मज़दूरों ने काम किया था. 6000 पत्थर रोज़ाना लगाए जाते थे. माल ढ़ोने में 1500 गधे और खच्चर इस्तेमाल किए जाते थे. उस दौर के सबसे बेहतरीन कारीगर नक्काशी में लगाए गए थे जिन्होंने बड़े करीने से शहर की दीवारों, दरों, महराबों, स्तंभों, और मार्गों को बनाया था. पुर्तगाल के एसत्रेमोज़ से सफ़ेद पत्थर मंगाए गए थे, कोरडोबा की पहाड़ी सिरीज़ से बैंगनी रंग का चूनापत्थर निकाला गया, पास के ही सिएरा डे काबरा से लाल पत्थर निकाला गया, 85 किलोमीटर दूर बसे लूके शहर से सफ़ेद चूना पत्थर लाया गया. और ख़लीफ़ा के पास सोने की तो कोई कमी थी ही नहीं. मदीना अल ज़हरा पुरातत्विक स्थल के निदेशक अल्बर्टो मोनतेजो के मुताबिक़ , "ये शहर ख़लीफ़ा की शान-ओ-शौक़त और ताक़त का प्रतीक था इसलिए इसे बनाते हुए इस बात का ध्यान रखा गया कि इसमें अधिकतम वैभव और भव्यता दिखे." "इस शहर के निर्माण के लिए राज्य ने भरपूर आर्थिक स्रोत लगाए थे. उस समय ख़िलाफ़त का सालाना बजट चालीस से पचास लाख दिरहम था जिसका कमसे कम एक तिहाई हिस्सा मदीना अल ज़हरा के निर्माण में ख़र्च किया गया था." शहर ऊंची-नीची चट्टानी जगह पर बना था. वास्तुकारों ने इसका फ़ायदा उठाते हुए शहर को तीन तलों में बनाया. सबसे ऊपर शाही क़िला यानी रॉयल अलकाज़ार था जो अब्दुर्रहमान तृतीय का निवास स्थान भी था. इसमें बड़े आलीशान खंभे लगाए गए थे और सजावट में महीन कारीगरी की गई थी. ख़लीफ़ा देख सकते थे पूरा शहर ख़लीफ़ा अपने महल की विशाल छत से कई किलोमीटर में फैले पूरे शहर को देख सकते थे. दूसरे तल में प्रशासनिक इमारतें और अहम अधिकारियों के घर थे. शहर के निचले हिस्से में आम लोग रहते थे. सैनिकों के घर, मस्जिदें, बाज़ार, स्नानघर और सार्वजनिक बाग़ीचे भी यहां थे. बनने के पंद्रह साल बाद ही शहर के कुछ हिस्सों को तोड़कर फिर से बड़ा करके बनाया गया. मोनतेजो कहते हैं, "कोरडोबा की ख़िलाफ़त भूमध्यसागर के इलाक़े में अपने दौर का महान साम्राज्य था जिसकी तुलना बीजान्टिन साम्राज्य से की जा सकती है. उस दौर में मदीना अल ज़हरा जितना आलीशान शहर नहीं था." हालांकि ये शहर सिर्फ़ 70 साल तक ही अस्तित्व में रहा. 976 में ख़लीफ़ा अब्दुर्रहमान के बेटे और उत्तराधिकारी अल-हाकेन द्वितीय की मौत के बाद से शहर का पतन शुरू हो गया. शासन की बागडोर उनके बेटे हिशाम के हाथ में चली गई जो सिर्फ़ 11 साल के थे. उस समय सत्ता अल हाकेन के सिपहासालार रहे अल-मंज़ूर चला रहे थे. अल-हाकेन ने ही उन्हें वज़ीर और हिशाम का सलाहकार नियुक्त किया था. लेकिन अल मंज़ूर ने अल-अंदालूस कि सत्ता पूरी तरह हथिया ली और फिर उन्होंने अपना अलग शहर बनाया, मदीना अल ज़ाहिरा और मदीना अल ज़हरा को छोड़कर चले गए. रक्तरंजित गृहयुद्ध के बाद साल 1031 में कोरडोबा की ख़िलाफ़त भी ख़त्म हो गई. इसके इलाक़े अलग-अलग राज्यों में बंट गए जिन्हें तैफ़ा राज्य कहा जाता है. और फिर मदीना अल ज़हरा को पूरी तरह छोड़ दिया गया. पश्चिमी दुनिया के सबसे ख़ूबसूरत शहर को लूट लिया गया और जला दिया गया. इसकी ख़ूबसूरती ख़त्म हो गई. राजधानी के निर्माण में लगी सबसे महंगी वस्तुयों को या तो हटा दिया गया या बेच दिया गया.  इमेज स्रोत,GETTY IMAGES मोनतेजो कहते हैं, "जिनके पास राजधानी से जुड़ी वस्तुएं थीं उन्हें सम्मान दिया जाने लगा और अंततः ये या तो सेविले पहुंच गईं या फिर उत्तरी अफ़्रीका या उत्तरी स्पेन के अन्य इwलाक़ों में." और फिर उसके बाद यहां लूटमार भी हुई. शहर को बुरी तरह लूट लिया गया. दीवारों और इमारतों से पत्थरों तक को निकाल लिया गया. मदीना अल ज़हरा एक जीते जागते ख़ूबसूरत शहर से एक खदान बन गया जहां से निर्माण सामग्री निकाली जाती रही. यहां पहले से कटे हुए और तराशे हुए पत्थर थे. और फिर इस शहर को भुला दिया गया. ये शहर दोबारा अस्तित्व में तब आया जब 1911 में यहां खुदाई हुई. इस जादुई शहर पर फिर से रोशनी पड़ने लगी. एक अनुमान के मुताबिक उस दौर के शहर का सिर्फ़ 11 प्रतिशत हिस्सा ही सामने आया है. साल 2018 में यूनेस्को ने इसे विश्व विरासत स्थल घोषित कर दिया.

Post a Comment

0 Comments

विधायक अवहाड़ के चुनाव प्रचार के लिए मुंब्रा पुहंचे आम आदमी पार्टी सांसद संजय सिंह.